नाता
नहीं छूटता शब्दों के स्याह मायाजाल से मेरा नाता
तेरे इश्क़ में दिल टूटने जैसा दर्द उठता है।
साँस लेना भी मुश्किल लगता है रह रह कर,
ये तो वैसी ही बात लगती है, जब दुनिया ने कहा था,
“खुश रहोगी तुम, उससे दूर रहकर।”
अकेले
एक रात, कुछ बात, कई किस्से बन जाते हैं
हाथ में जकड़े उस उपद्रवी खिलोने को
जब एक तरफ रख, आँख से आँख हम मिलाते हैं।
सालों तक बुनते रहे किस्से कहानियों का सिलसिला अब थम गया,
रुक रुक के यूँही बातें करने का दौर, लो ख़त्म हुआ।
कभी अल्फ़ाज़, कभी आवाज़, कभी आँखों से बातें कहते थे
डिजिटल दुनिया के मायाजाल में, अब सब अकेले रहते हैं।
अनहद
कुछ नीले – काले, स्याह से शब्द यूँ ही बिखरे रहते हैं,
कही कभी शायद कविता-कहानी जैसे एक तार में बंध जाए।
एक छत, एक कमरा,चारदीवारी के भीतर रोज़ के कामों में
कभी कही कोई तार खिंच सा जाता हैं
शब्द बिखरे पड़े रहते हैं, फिर भी दिल तरसता है,
शब्दों को बांध कर गरम मूंगफली जैसे
यूँ ही कुछ किस्से बुन लूँ, ख़त्म न हो कभी ऐसी बातें चुन लूँ